mera mat
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चलो यह गांठ खोले
चलो कुछ शब्द बोलें
मौन का कल्प बीता
नाद के पल टटोलें
ये कैसा आवरण है
पुरुष पर प्रकृति का
चलो इसको उतारें
चलो फिर बुद्ध हो लें
ये किसकी दृष्टि से हम
निरखते हैं भुवन को
स्वयं ही रोकते हैं
रश्मि के आगमन को
भ्रमित उत्तर से हों तो
चलो फिर प्रश्न को लें
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