mera mat
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क्यों ह्रदय की वेदना को
स्वर न दूं मै
तुम टूटते सपनो की
हर एक कब्र पर
एक शातिराना जश्न के
दीपक जलाना
हर लाश का स्वामित्व लेना
और मुर्दा बस्तियों में
गुनगुनाना
जिन्दगी की पौध
को हर अब्र पर
क्यूँ नहीं तत्पर करूँ मै
क्यों ह्रदय की वेदना को
स्वर न दूं मै
जिन्दगी भी मांगती है
मूल्य जो
है चुकाता कौन अपने
रक्त से
तुम जो परजीवी
लहू को चूसते
हार जाओगे हमारे
वक्त से
आजमाइश आख़री है
सब्र पर
प्रतिरोध के इस कारवां में
चल पडू मै
क्यों ह्रदय की वेदना को
स्वर न दूं मै
तुम करो विध्वंश ,मै
विप्लव करूंगा
आह भी होगी, ह्रदय में
आग भी मै ही
भरूंगा
तुम ह्रदय के चांद की
कतरन सजाना
मैने तो चाहा उसे
दिल मे बसाना
मै समय की लेखनी
का हमसफर
क्यों न कण्टकयुक्त
मुक्तिपथ वरूं मै
क्यों ह्रदय की वेदना को
स्वर न दूं मै
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