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संवाद

mera mat
mera mat
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1—-
मन की वीणा तुम्हारे हाथों में
जिस पर खिंच गई सी
तार हूं मै
बस यूं ही फेरो
उंगलियां मुझ पर
कांप जाऊं मै
झनझना जाऊं
एक महका सा
राग बन जाऊं
2——
तेरे सांचे मे ढला
मोम हूं मै
मै ही वह
चेतना की बाती भी
मुझे स्पर्श दो
स्फुर कर दो
जल उठूं लौ की तरह
और थरथरा जाऊं
एक सूरज न बनूं मै
न सही
एक अंधेरे की
आस बन जाऊं
3———
तेरी सृ्ष्टि का
मै समन्दर हूं
मन मे लहरें
असंख्य उठती हैं
प्रेम का ताप दो
मै भाप बनू उड़ जाऊं
अपनी हरियाली से
शीतल कर दो
संघनित हो चलूं
बरस जाऊं

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