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और जब बदल चुका है
चेहरा दुश्मन हमारा
बदल चुका चुपचाप वह रणनीतियां
एक कवायद हमें भी करनी पड़ेगी
शत्रु को पहचानने की
गौर से देखिए चारों तरफ
सर्वव्यापक रण हमें धेरे हुए है
लग गई मनुष्यता है दांव पर
एकमात्र स्वत्व है जिसके लिए लड़ना पड़ेगा अंततः
क्या कहा वो रण कहाँ है ?
देख लो अन्तः करण जो था तुम्हारा अब नहीं है
हस्तगत है कर चुका शत्रु इसे
और पड़ अपवित्रता के हाथ में
अन्तः करण खो चुका है धार अपनी आंख अपनी
अब देखता है जो दिखाया जाता है
आज हम जहाँ खड़े हैं बाजार है वह घर नहीं है
आज हम जहाँ खड़े हैं बाजार है शहर नहीं है
आज हम जहाँ खड़े वह देश दुनिया भी नहीं है
बाजार है चारो तरफ बाजार है
जहाँ बिकना नियती है खरीदना मजबूरी है
जीवंत थे मनुष्य हम समाज के
क्या पता कब रोबोट में बदल गए
खरीदते हैं बेचते हैं बस यही कुल काम है
और खुशी का साफ्टवेअर
हार्डडिस्क में अपनी रन कराकर
सोच लेते हैं बहुत ही खुश हुए
हम रोबोट्स के रिमोट के कंट्रोल पर बैठे हुए
शत्रु हमारे बाँटते हैं भावना की सीडीयाँ
और हम ध्यान भी दे पाए क्या वह प्रक्रिया
जिससे बने रोबोट हम दुनिया बनी एक प्लेस्टेशन
जैसे जैसे हमने अपना अर्थ खोया
दुनिया ने दुनिया होने का ही अर्थ खोया
एक किरण उम्मीद की अब भी हमारे पास है
जो दुसाध्य से प्रतिकूल से परिवेश में जीवित रही
कुछ होने के अहसास की भूमि हमारे पास है
यह देखती है सर्वव्यापी पतन क्योकि
इसका नियंत्रक स्विच नहीं शत्रु बना सकता
इस जीवन्तता और इच्छा की स्वतंत्रता के बोध से
इस विपथगामी समय से जूझना हमको पड़ेगा
यह कठिन अपरिहार्य सा सफ़र है करना पड़ेगा
बाजार से दुनिया तक का रोबोट से मानव तक का
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