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किस आशा मे इन टुकड़ों को

mera mat
mera mat
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किस आशा मे इन टुकड़ों को

चुनते हो और सजाते हो

यहां कोई नही आने वाला

किससे उम्मीद लगाते हो ?

ये सपने कांच के घर जैसे

जब भूख गरीबी के पत्थर

छूटेंगे बरस ही जाएंगे

सौ सौ टुकड़ो मे सपनों के

सौ सौ टुकड़े बस जाएंगे

जो टूट गया और बिखर गया

वह दर्पण हो या ह्रदय प्रिये

उन खण्डित अवशेषों मे

कुछ सपने फिर भी बचे रहे

शोकगीत क्यूं गाते हो

बिखरे तो बिखरते रहने दो

ये अश्रु सूख ही जाएंगे

तिरते हैं तिरते रहने दो

ये सच है टूटा करते हैं

पर खत्म नही हो जाते है

एक घर को खाली करते हैं

तो बस्ती एक बसाते हैं

रोपो इन टूटे टुकड़ों को

क्यूं पत्थर से घबराते हो

किस आशा मे इन टुकड़ों को

चुनते हो और सजाते हो

यहां कोई नही आने वाला

किससे उम्मीद लगाते हो ?

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