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वेदना तो कम न होगी सान्त्वना ही दे सकूंगा

mera mat
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वेदना तो कम न होगी

सान्त्वना ही दे सकूंगा

जो कर सकूं विश्वास प्रियवर

यह ह्रदय तेरा सुलगता

और नयन -अवसाद तेरा

उड़ चलेगा भाप बनकर

मेरे शब्दों की तपन से

प्रेम के अर्पित सुमन से

तेरे मनस की अंध -वीथी

मे अगर आवाज मेरी

जल पड़े एक दीप बनकर

माथे पर खिंच आई रेखा

की किसी अप्रिय सुधी को

ख्त्म कर दे जो प्रिये तो

अवसानमय यौवन तुम्हारा

जी उठे फिर से यदि तो

फिर वही मै गीत गाऊं

निर्झरों वन प्रान्तरों के

पर्वतों के चांदनी के

प्रेम के और प्रेयसी के

तप्त हाथों की छुअन से

कांपती उस रूपसी के

पल पल बदलते भावों की

उस चेहरे पर सरकसी के

अधरों पर कभी अनायास ही

रुक गई उस लालिमा के

फूल बरसाने को आतुर

शाख की उस भंगिमा के

एक सुगन्धित सा निमन्त्रण

दे रही तत्पर निशा के

फिर कहो प्रियवर तुम्ही

मै अनवरत गाता रहूंगा

शब्दों की माला बनाकर

रोज पहनाता रहूंगा

पर नही जीवन समर मे

कुछ भी कम होगा प्रिये

जख्म पर नश्तर चलेगा

दर्द तो होगा प्रिये

शब्द मरहम मात्र हैं

साधन हैं पैनापन लिये

इस पर नही है वश मेरा

कितना भी चाहूं जो प्रिये

निर्दयी साधन को सहने

का यतन कर लो प्रिये

वेदना तो कम न होगी

सान्त्वना ही दे सकूंगा

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