mera mat
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वक्त के उस फ्रेम मे अब भी जड़ी हो
तुम वहां
उस हैण्डपम्प पर
गालों पर बची रह गई
बूंदों को पोछते हुए
प्यास तो मुझको भी लग आई थी
दो बूंद की
जो बनकर तुम्हारा प्रेम पात्र
धारण करता मैं
तृ्प्त हो जाता
आजीवन मैं
आज भी जब उधर से
गुजरता हूं तो
बरबस ही
पैर मेरे खींच ले जाते है
उस हैण्डपम्प तक
अंजुरी कर देता हूं
उसके आगे
ऎसा लगता है
तुम आकर
इसे चला गई हो
वह पानी जो
ठहर गया है
कोरों पर
गिर पड़ेगा बनकर बूंदों सा
अंजुरी में
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