mera mat
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विश्लेषणों की भूमि एक वंचना पर जा टिकी है
प्रतिकार की प्रतिध्वनी में पण्य लालसा छिपी है
समाधान ओढ़कर चले साजिशों के मशविरे हैं
सवाल जल रहे जवाब हाथ सेकते खड़े हैं
ऊपर हरा भरा तना भीतर बहुत ही खोखला है
दिग्भ्रमित सभ्यता का मुख बहुत ही पोपला है
खानाबदोश चाहतों के रक्तरंजित हाथ में
परचम उठा प्रतिरोध के जिन्दा बचे जज्बात में
मुक्तिपथ उजाड़ सा प्रतीक्षारत सा बिछा है
बस भ्रमों की धुंध में पहचानना भर रहा गया है
ये हाड़-मांस -सत्य तो दो गज जमीन में गड़े हैं
सवाल जल रहे जवाब हाथ सेकते खड़े हैं
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