mera mat
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मन को एक कोठरी बना
नियती के चिंतन में उलझा
अपनी ही गाथा भूल चुका
कारवां अगर है आज रुका
इस व्यापक भटकन के आगे जग नतमस्तक जो होता है.
क्यों ?
मुझको अचरज होता है.
जब तक यह जीवन
शेष रहा
जी भरकर अपना
यत्न किया
फिर उम्मीदों की अर्थी को अपने कांधों पर ढोता है
क्यों ?
मुझको अचरज होता है.
यह हरी भरी सी
है जो धरा
कल था यहां एक
मरू पसरा
एक झुण्ड जो आगे बडकर के दाने विप्लव के बोता है.
क्यों ?
मुझको अचरज होता है.
लघुत्तम से
महत्तम तक
स्पंदन,परिवर्तन
होता है
जब सारा ब्रम्हाण्ड सजग,जग आंख मूंदकर सोता है.
क्यों ?
मुझको अचरज होता है.
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